Lok devta gogaji ki biography - लोक देवता वीर गोगा जी का जीवन परिचय, गोगा जी के जीवन के बारे में

वीर गोगाजी का जीवन-परिचय (गोगा वीर गोगा जी के बारे में)

वीर गोगाजी =

वीर चौहान गोगा जी का जन्म विक्रम संवत 1003 चूरु जिले के ददरेवा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम जेवरसिंह  तथा माता का नाम बाछल देवी था।  ऐसी मान्यता है की गोगा जी का जन्म गुरु गोरखनाथ के आशीर्वाद से हुआ था। उनका विवाह कोलूमण्ड की राजकुमारी  केलमदे के साथ  होना तय हुआ था किंतु विवाह के होने से पहले के केलमदे को एक सांप ने डस लिया था। इससे गोगाजी कुपित हो गए और मंत्र पढ़ने लगें। मंत्र शक्ति के कारण नाग तेल की कढ़ाई मे आकर मरने लगे। तब स्वयं नागदेव ने प्रकट होकर केलम दे का जहर निकाला तथा गोगाजी को नागो का देवता होने का वरदान दे गए। 



गोगा जी का जीवन परिचय

  • जन्म                     ---   वि स 1003
  • जन्म स्थान            ---   ददरेवा (चूरु)
  • पिता का नाम         ---   जेवर सिंह
  • माता का नाम         ---   बाछल देवी
  • पत्नी का नाम         ---   केलम दे (फलोदी जोधपुर)
गोगाजी के प्रमुख स्थान
  • गोगामेडी या धुरमडी   ---  नौहर (हनुमानगढ़)
  • शीर्षमेडी                    ---  ददरेवा ( चूरू)
  • गोगाजी की ओल्डी     ---  सांचौर (जालौर)

  • मेला   ---   भाद्रपद कृष्णा नवमी (गोगा नवमी)
  • मेले का प्रमुख वाद्य यंत्र  ---  डेरु
 गोगाजी का मेला हिंदू-मुस्लिम सद्भावना का मेला होता है इस मेले में हरियाणवी नस्ल के गोवंश सर्वाधिक बिकते हैं
  • मुस्लिम पुजारी चायल कहलाता है

गोगा जी के जीवन के बारे में महत्वपूर्ण बातें-

आज भी सर्पदंश से मुक्ति के लिए गोगा जी की पूजा की जाती है । लोक धारणा हे कि सर्पदंशित व्यक्ति को यदि गोगाजी की मेडी गोगा जी का चबूतरे तक लाया जाए तो व्यक्ति सिर्प विष मुक्त हो जाता है।
भाद्रपक्ष कृष्णा नवमी को गोगाजी की स्मृति में मेला लगता है

इनका अपने मोसेरे भाई अर्जुन सर्जन केसा जमीन जायदाद को लेकर झगड़ा चल रहा था। अर्जुन सर्जन इन के विरुद्ध मुसलमानों की फौज चढ़ा लाइए इन आक्रमण ने इनकी गायों को घेर लिया जिसके प्रतिरोध में गोगाजी ने युद्ध किया

गोगाजी युद्ध में चपल और सिद्ध होने के कारण रणक्षेत्र में  हर कहीं दिखाई देते थे।  उनके इस रणकौशल को  देखकर ही महमूद गजनवी ने कहा था कि यह तो "जाहीरा पीर" हैं   अर्थात साक्षात् देवता के समान प्रकट होता है। इसलिए ये जाहरपीर के नाम से प्रसिद्ध है।
उत्तर प्रदेश में भी जाहरपीर के नाम से जाना जाता है। और मुसलमान इन्हें "गोगा पीर" कहते है।

युद्ध भूमि में अपने 47 पुत्र तथा 60 भतीजो साथ शहीद हुए। गोगा जी ने गौरक्षा एवं तुर्क आक्रांताओं ( महमूद गजनवी) से  देश की रक्षा के लिए प्राण न्योछावर कर दिए।

 राजस्थान का किसान वर्षा के बाद हाल जोतने से पहले गोगाजी के नाम की राखी गोगा राखड़ी हेल और हाली दोनों को बांधता हैं।
रक्षाबंधन पर बांध की राखियां गोगाजी के घोड़े के पैर में अर्पण की जाती है।


गोगाजी के थान खेजड़ी वृक्ष के नीचे होते हैं।
गोगाजी का थान जो जंगल में होता है उसे बनी कहते हैं।
 जहां मूर्ति स्वरुप एक पत्थर पर सिर्प की आकृति अंकित होती है। इसलिए मारवाड़ में तो यह कहावत है कि गांव गावं गोगो ने गांव गांव खेजड़ी ।

गोगाजी के प्रमुख स्थल-

ऐसे मान्यता है कि युद्ध भूमि में लड़ते हुए गोगा जी का सिर चुरू जिले के जिस स्थान पर गिरा था वहां शीशमडी तथा युद्ध करते जहाँ शरीर गिरा उसे गोगामेडी कहा गया। गोगा जी के जन्म स्थल ददरेवा को शिर्षमेडी तथा समाधि स्थल को गोगामेडी ( ननोहर - हनुमानगढ )  को धुरमेड़ी कहते हैं।
गोगामेडी की बनावट मकबरानूमा हैं। 
गोगाजी का प्रमुख स्थल गोगामेडी का निर्माण फिरोजशाह तुगलक ने करवाया।
इसको वर्तमान स्वरूप बीकानेर के शासक गंगा सिंह ने दिया।
गोगामेडी के दरवाजे पर बिस्मिल्लाह शब्द अंकित है
सांचोर (जालौर) में भी गोगा जी की ओल्डी़ नामक स्थान पर गोगा जी का मंदिर है ।
गोगा जी की सवारी नीली घोड़ी थी ।
इन गोगा बप्पा के नाम से भी पुकारते हैं गोगाजी की पूजा  भाला लिए योद्धा के रूप में या सिर्प रुप में होती है।

गोगाजी का 70वां वंशज कायम सिंह का कायम सिंह को जबरदस्ती मुस्लिम बनाया तो इन के वंशज कायमखानी कलाई




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